Property का Valuation कैसे करें?

Property का Valuation कैसे करे? वो क्या चीज़े है जो valuation पर असर करती है? किन बातों का ध्यान रखना चाहिए? यह कुछ ऐसे सवाल है जो अक्सर हमारे मन में उठते है. आइये इन्हें समझने की कोशिश करते है. हम जब भी कोई plot या flat खरीदने जाते है तो सबसे पहले पूछते है की जगह कितने square feet (sq. ft) की है. हमारे यहाँ (भारत में) जगह मापने की सबसे छोटी इकाई (unit) square foot है. एक Square foot का मतलब है 1 foot x 1 foot. याने की लम्बाई (length) और चौड़ाई (breadth) दोनों बराबर है.

अब अगर कोई व्यक्ति कहता है की मेरे पास 1500 square feet (पंद्रह सौ sq.ft) का flat है तो इसका मतलब है की flat का माप 50 x 30 का है. यह ज़रूरी नहीं है की जगह हमेशा चौकोण, वर्ग (square) आकर में हो, वह आयत (rectangle) आकर में भी हो सकती है. हम यहाँ जगह की बात कर रहे है. जगह एक plot भी हो सकता है और एक flat भी. दोस्तों इससे पहले की हम आगे बढे कुछ इकाइयों को समझ लेते है, क्यूंकि सारा खेल इसी पर है.

जैसा की हमने बताया की square foot जगह मापने की सबसे छोटी इकाई है. इससे बड़ा होता है गज (square yard), उसे बड़ा बीघा (bigha) और फिर एकड़ (acre).

1 square foot = 1 foot x 1 foot (1 foot = 30 cm)

1 square yard = 3 feet x 3 feet = 9 feet (गज)

1 bigha = 17,452 square feet

1 acre = 43,560 sq. feet (208.71 feet x 208.71 feet)

1 hectare = 2.47 acre

दोस्तों जब भी कभी जगह की बात होती है तो दो महत्वपूर्ण बाते समझना ज़रूरी है. Carpet Area और Built up Area. इसके आलावा एक और area होता है जिसे Super Built up Area कहते है. आइये निचे दिए गए Image 1.0 (चित्र) से तीनो को समझने की कोशिश करते है.

Image 1.0

 

Carpet Area: यह घर का वो अंदरूनी हिस्सा होता है जिसे आप इस्तेमाल करते है. जहाँ आप अपना सामन, furniture रखते है. जिस पर आप कालीन बिछा सकते है. ध्यान रहे की हम यहाँ दिवार के अन्दर की जगह की बात कर रहे है. लाल रंग की दीवारें जो जगह खा रही है उसकी नहीं. आपकी लाल दिवार छः इंच की भी हो सकती है और नौ इंच की भी. दिवार जितनी मोटी होगी आपका carpet area कम होते जायेगा. Carpet Area के अंतर्गत balcony और common areas नहीं आते.

Built up Area: इसका मतलब है property की पूरी जगह. इसमें carpet area के साथ वो जगह भी आ गयी जिसपर दिवार खड़ी है. मतलब जो लाल रंग की दीवारें है (अन्दर की) और जो काली रंग की दीवारें है (बाहर की) वो भी. इसमें balcony भी आ गयी.

RERA Act: अगर आप कोई plot, flat या मकान खरीद रहे है तो आपको RERA कानून पता होना चाहिए. यह कानून 2016 में आया था. इस कानून में यह प्रावधान किया गया है की Real Estate में जो कुछ हो रहा है उसे केंद्र सरकार और राज्य सरकार मिलकर regulate करेंगे. (Real Estate Regulatory Authority). पहले ऐसा कोई कानून नहीं था जिस वजह से उपभोक्ता (customer / खरीददार) को कई मुसीबतों का सामना करना पड़ता था. आइये इसके कुछ नियम देखते है.

  • सबसे पहले Builder को अपना प्रोजेक्ट register करना होगा. कोई भी builder बिना रजिस्ट्रेशन के flat बेच नहीं सकता है. रजिस्ट्रेशन के दौरान builder को सम्पूर्ण जानकारी देनी होगी, जैसे की मालिक कौन है, directors कौन है, promoters कौन है, company की balance sheet, बाकी details व सबकुछ. पहले builders लोगों को चुना लगाकर भाग जाते थी, इसी चीज़ से बचने के लिए यह कानून लाया गया ताकि लोगों का नुकसान ना हो सके.
  • इस act के अंतर्गत builder को exact carpet area बताना पड़ता है. पहले बिल्डर्स Super Built up Area बताकर flat बेचते थे. उदहारण के लिए – Builder 3000 sq ft की जगह बताकर flat बेचते थे लेकिन actual area होता था 1200 या 1400 sq ft का. इस कानून के बाद से carpet area ही बेचा जाने लगा है. RERA carpet area में बाहर की दीवारें, balcony, terrace शामिल नहीं होती. लेकिन अन्दर की दीवारें (लाल रंग की) वो शामिल होगी.
  • एक महत्वपूर्ण प्रावधान यह भी है की builder ने अपने customers से जितना भी पैसा बूकिंग द्वारा लिया है उसका 70% एक बैंक अकाउंट में जमा करना होगा. Builder इस अकाउंट से पैसा तभी निकाल सकता है जब उसका Engineer, Architecture और Chartered Accountant progress certificate पर दस्तखत करके दे. उसमे भी जितना प्रतिशत काम हुआ है उतना ही पैसा निकाला जा सकता है. अगर 25% काम हुआ है तो 25% ही राशी निकाली जा सकती है. एक साथ पूरा पैसा निकालने की permission नहीं है. साथ ही builder को ये सारी चीज़े नियमित रूप से audit भी करवाते रहना होगा.
  • अगर कोई builder समय पर प्रोजेक्ट पूरा नहीं कर रहा या झूठे वायदे कर रहा तो उपभोक्ता RERA में शिकायत कर सकता है और builder को इस इस कानून के अनतर्गत पेनाल्टी भी देनी होगी.
  • इस कानून के तहत builder को अपने प्रोजेक्ट की guarantee कम से कम पांच साल के लिए देनी होगी. अगर इस दौरान कुछ भी construction defect होता है तो उसकी जिम्मेदारी builder की होगी.

दोस्तों, आप जब भी किसी प्रोजेक्ट में invest करे तो चेक करे उसका RERA Number क्या है. आपको वह internet पे मिल जायेगा. अगर RERA Number है तो इसका मतलब वह प्रोजेक्ट पूरी तरह clear है, safe है. वैसे अगर कोई builder समय पर प्रोजेक्ट पूरा नहीं कर रहा या झूठे वायदे कर रहा तो उपभोक्ता RERA में शिकायत कर सकता है. RERA कानून के तहत builder को पेनाल्टी भी भरनी पड़ सकती है. उपरोक्त बताये गए RERA के कुछ महत्वपूर्ण rules है जिनका पालन Builder को करना होगा. इसके आलावा और भी rules है जिन्हें लोगों के हित को ध्यान में रखकर बनाये गए है.  चलिए अब वापस अपने टॉपिक की तरफ चलते है.

Super Built up Area: इसमें Carpet Area भी आ गया, Built up Area भी आ गया और वो Common areas भी आ गए जो आपके आलावा दुसरे लोग भी इस्तेमाल करते है. जैसे की – lift, staircase (सीढियाँ). बड़े बड़े Projects amenities (सुविधाएं) प्रदान करते है. मसलन club house, swimming pool, garden, gym etc. यह सब Super Built up Area में आता है.

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आइये दोस्तों अब Valuation को समझने की कोशिश करते है.

सबसे पहले आप जिस area में, society में flat खरीदना चाहते है वहां आस पास अगर  कोई flat स्कीम चल रही है तो पता करे की वहां क्या rate चल रहा है. Flat furnished है, semi furnished है या पूरी तरह खाली है, इससे भी flat की कीमत पर असर पड़ता है, याद रखिये.

Rate: Rate पता चल जाने के बाद आप per square feet calculate कर सकते है. कैसे? बताता हूँ. मान लीजिये एक 2BHK Flat है. उसका area 2000 sq. ft है और कीमत है पचास लाख. तो उसका rate हो जायेगा 50,00,000 / 2,000 = 2,500 rs./sq.ft.  इसी तरह कई और flat होंगे जिनका rate 2,000 rs./sq.ft, 1,500 rs./sq.ft, 1,000 rs./sq.ft हो सकता है.

Costing: दोस्तों, plot हो या flat सारा खेल per square foot का है. जगह की कीमत तो पता चल गयी, लेकिन अब मान लीजिये आपके पास built up area 1000 sq. feet का है तो उसके construction की कीमत per square foot के हिसाब से ही निकाली जाती है. Tier 1 cities जैसे की Mumbai, Delhi, Chennai, Bengaluru, Hyderabad, Pune, Ahmadabad, Kolkata जैसे शहरो में Residential building की कीमत 2000 – 3000 rs/sq.ft होता है.  इसमें labour, material, engineer सब आ गया. अगर Commercial property है तो इसकी कीमत 3000- 4000 तक जा सकती है. Costing इस बात पर भी निर्भर करता है की flat / office में जो मटेरियल लगा है वो कितना महंगा है.

Online rates: दोस्तों किसी भी property की कीमत दो तरीके से पता चल सकती है. या तो online या सीधे broker या agent से बात करके. दोनों ही सूरतों में आप 5-10% negotiate (मोलभाव) कर सकते है. उदहारण के तौर पर अगर किसी property की कीमत पचास लाख है तो आप मोलभाव करके उसे 45 से 47 लाख के बिच lock कर सकते है.

Amenities: बोहोत से Real Estate Developers कुछ सुख सुविधाएं प्रदान करते है. जैसे की swimming pool, tennis court, gym, kids park etc. यह वो Premium चीज़े है जो आमतौर पर हर developer नहीं दे पाता. अगर आपको यह चीज़े मिल रही है तो इस पर extra 10% देने में कोई हर्ज़ नहीं है. क्यूंकि यह चीज़े lifetime के लिए हो जाती है. तो जो property आपको 45-47 लाख में मिल रही थी, उसके लिए आप 49.5 – 51.7 lakh दे सकते है.

Location: किसी भी property की कीमत इस बात पर भी निर्भर करती है की उसका location क्या है. वो property airport, railway station, main city से कितने पास या दूर है, यह मायने रखता है. मान लीजिये एक property एयर पोर्ट से 10 km. दूर है और दूसरी property 15 km दूर है. दोनों का carpet area बराबर है और Amenities भी लगभग same है. तो ऐसे में हवाई अड्डे से जो property नजदीक है वो बिलकुल महँगी हो सकती है.

Prime location: अगर कोई property road touching है तो वो 50% भी महँगी हो सकती है. क्यूंकि वहां पर shop या showroom बनाया जा सकता है. यह भी हो सकता है की वह property turning अर्थात किसी मोड़ पर हो. ऐसे में उसकी कीमत market value से कई ज्यादा हो तो कोई हैरानी की बात नहीं होगी.

Furniture: दोस्तों मान लीजिये किसी flat में furniture लगा है. Dining table, sofa set, wardrobe, cabinets etc. इस furniture की कीमत दस लाख रुपये है. तो आप इस पर सीधा सीधा 50-60% depreciation लगा सकते है. और अगर furniture लगा कर तीन चार साल हो गए है तो आप 70% तक depreciation लगा सकते है.

तो दोस्तों उम्मीद है की property खरीदने से पहले यह कुछ चीज़े है जिन्हें आप अपने ज़हन में ज़रूर रखेंगे. देखिये, अगर कोई खरीददार (Buyer) कोई ज़मीन या flat खरीदना चाहता है तो वो चाहेगा की उसे वो सही सही दाम पर मिले. ठीक उसी प्रकार विक्रेता (Seller) भी चाहेगा की उसे भी सही दाम मिले. इसलिए property का सही valuation पता होना चाहिए.

 

 

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