
5 Important Financial Ratios जो सभी को पता होना चाहिए. जैसे की? वो भी जानेंगे, लेकिन सबसे पहले यह समझना ज़रूरी है की आखिर Finance में Ratios (अनुपात) महत्त्व क्यूँ रखते है. किसी भी कंपनी की financial health (वित्तीय हालत), उनका performance (प्रदर्शन), उनकी efficiency (कार्यक्षमता) का विश्लेषण करने में financial ratios अहम् भूमिका निभाते है.
Financial Ratios की मुख्य बातें.
- एक ही व्यवसाय, जैसे की Automobile industry में अगर बहुत सारी कम्पनियां है तो उनका तुलनात्मक विश्लेषण करने में Ratios मददगार होते है.
- समय के साथ कौन सा ट्रेंड चल रहा है या बदल रहा है, यह भी ratios से पता चलता है.
- Ratios देखकर ऋणदाता (creditors) यह अनुमान लगाने में सक्षम होते है की उधार देने पर कितना जोखिम (risk) रहेगा.
- Ratios का इस्तेमाल करके निवेशक इस बात का पता लगाते है की किसी कंपनी में निवेश करना सही रहेगा या नहीं.
- Inventory turnover और Asset turnover जैसे ratios की मदद से यह पता चलता है की कोई कंपनी अपने resources (संसाधन) का कितनी कुशलता से इस्तेमाल कर रही है.
अब आप समझ गए होंगे की Financial Ratios निवेशक और कंपनी दोनों के लिए क्यूँ महत्वपूर्ण होते है. वैसे तो छोटे मोटे बोहोत सारे ratios है लेकिन अगर आप निवेश को लेकर सचमुच गंभीर है तो अब उन Ratios पर नज़र डालते है जिसकी हम बात कर रहे थे. सबसे पहले –
Shares – एक झलक
मान लीजिए कि एक कंपनी ABC Ltd. ने कुल 1 करोड़ शेयर जारी किए हैं. अब इसमें से –
- 80 लाख शेयर आम निवेशकों और संस्थाओं के पास हैं.
- 10 लाख शेयर कंपनी के अधिकारियों और कर्मचारियों के पास हैं.
- 10 लाख शेयर कंपनी ने वापस खरीदे हैं. इन्हें Treasury shares भी कहते है.
तो, ABC Ltd. के Outstanding Shares होंगे:
80 लाख+10 लाख=90 लाख शेयर
यहाँ हमने Outstanding Shares का जिक्र क्यूँ किया यह आगे समझेंगे.
1. Earning Per Share (EPS)
EPS मतलब Earning/share. अर्थात हर शेयर पर कितनी कमाई हो रही है. कितना profit हो रहा है. EPS निकालने का एक फार्मूला भी है, जिसे हम आगे देखेंगे. वैसे गूगल पर किसी भी कंपनी का EPS आसानी से पता किया जा सकता है. अहम बात यह है की हमें उसे analysis करते आना चाहिए.
वैसे यह बात ध्यान रहे की ईपीएस, Fundamental Analysis का बहुत छोटा किन्तु महत्वपूर्ण हिस्सा है. अगर किसी कंपनी का EPS साल दर साल बढ़ रहा है और debt कम हो रहा है तो इसका मतलब कंपनी अच्छा प्रदर्शन कर रही है. लेकिन अगर debt भी बढ़ रहा है तो यह अच्छी बात नहीं है. अब चलिए EPS का फार्मूला देखते है.

मान लीजिए कि XYZ Ltd. नाम एक कंपनी को 2024 में 10 करोड़ रुपये का शुद्ध लाभ (Net Profit) हुआ. कंपनी के पास बाजार में 50 लाख शेयर (Outstanding Shares) हैं. तो EPS की गणना इस प्रकार होगी:

इसका मतलब है कि XYZ Ltd. ने साल 2024 में प्रत्येक शेयर के लिए 20 रुपये का मुनाफा कमाया है.
Note: EPS हमेशा साल दर साल का देखना चाहिए. केवल current year का नहीं. पिछले पांच या दस साल से EPS बढ़ रहा है या घट रहा है यह देखना चाहिए.
2. Price to Earning Ratio (PE)
एक समझदार निवेशक कभी भी किसी कंपनी का PE Ratio देखे बिना उसमे पैसा नहीं डालेगा. किसी अच्छे stock की पहचान करने में PE Ratio महत्वपूर्ण भूमिका निभाते है. PE का मतलब होता है Price to Earning Ratio. इस रेश्यो से हमें यह पता चलता है की ₹1 कमाने के लिए हम कितनी कीमत दे रहे है.
मान लीजिये A और B नाम की दो कंपनिया है. दोनों कंपनी एक ही product (उत्पाद) बनाती है. लेकिन A कंपनी का share price सौ रुपये है और B का पांच सौ है. अब अंदाज़ा लगाइए किस कंपनी का share price सस्ता होगा. कई लोगों को लगेगा की A का सस्ता है. लेकिन किसी भी कंपनी का share price देखकर हम यह नहीं कह सकते की वो सस्ता है या महंगा. इसी चीज़ को जानने के लिए PE Ratio देखा जाता है. वैसे तो किसी भी कंपनी के stock का PE आपको गूगल करने पर आसानी से मिल जायेगा लेकिन फिर भी हम एक बार फार्मूला देखेंगे.

इसे उदाहरण से समझते है.
मान लीजिए किसी कंपनी का share price ₹500 चल रहा है और उसका EPS ₹25 है. तो PE Ratio होगा:

इसका मतलब है कि निवेशक कंपनी के ₹1 की आय के लिए ₹20 का भुगतान कर रहा है. अक्सर निवेशक किसी कंपनी के stock को खरीदने से पहले उसके Industry का PE देखते है. उसके बाद उसके competitor का. PE Ratio से पता चलता है कि कंपनी का शेयर overvalued है या undervalued. अगर PE Ratio ज्यादा है, तो शेयर महंगा माना जाता है, और अगर कम है, तो सस्ता.
Note: कभी भी किसी stock का PE देखते समय उसका Industry PE देखना चाहिए. क्यूंकि उससे average PE पता चलता है. अब यह share उस क्षेत्र में (उदा. ऑटोमोबाइल) सस्ता है या महंगा जानने के लिए उसके साथ वाली कंपनी के PE के साथ तुलना करके देख सकते है.
3. Debt to Equity Ratio (DE)
एक बार मनोज ने तय किया की वो समोसे की दूकान लगाएगा. उसके लिए खर्चा था ₹10,000. इसके लिए मनोज ने ₹4,000 अपनी जेब से लगाये और 6,000 किसी से उधार लिए. अब यहाँ पर ₹4,000 कहलायेंगे equity (स्वयं का पैसा) और ₹6,000 कहलायेंगे debt. अब Debt to Equity का भी फार्मूला है.

अगर हम यहाँ debt to equity निकाले, तो वो होगा –
6,000 ÷ 4,000 = 1.5
इसका मतलब यह हुआ की मनोज ने अपनी जेब से खर्च हुए हर ₹1 (एक) के लिए ₹1.5 (डेढ़) का क़र्ज़ लिया. इस case में debt to equity ज्यादा है. इसलिए जब भी निवेशक किसी कंपनी में पैसा डालते है तो सबसे पहले यह देखते है की उसका debt to equity ‘1’ से कितना ज्यादा है. जितना ज्यादा मतलब कंपनी पर उतनी ज्यादा उधारी. ऐसी कंपनी risk के श्रेणी में आती है.
To be Continued. (क्रमशः)
अब हम दो और ratios देखेंगे. चूँकि दोनों ratios बोहोत महत्वपूर्ण आर गंभीर है इसलिए हम उन्हें अगले भाग में देखेंगे. एक ही बार में पांच ratios पढना और उन्हें समझना बोहोत मुश्किल है. पाठकों से निवेदन है की पहले इन तीन ratios को अच्छे से समझने के बाद ही उन दो ratios के बारे में पढ़े.
भाग 2 यहाँ पढ़े – Part 2