5 Important Financial Ratios जो सभी को पता होना चाहिए. (2/2)

5 Important Financial Ratios जो सभी को पता होना चाहिए. 3 हम देख चुके है और अभी आगे बढ़ते हुए बाकी के 2 देखेंगे.

4. Return On Equity (ROE)

निवेश करने से वक़्त सबसे पहला सवाल मन में आता है की, return कितना मिलेगा? मतलब profit कितना मिलेगा? तो जान लीजिये की ROE, एक Profitability Ratio है. मतलब यह कंपनी की Profitability को मापता है. इससे यह पता चलता है कि कंपनी ने अपने शेयरधारकों (Shareholders) की इक्विटी (Equity) का उपयोग करके कितना लाभ (Profit) अर्जित किया है. ROE यह बताता है कि कंपनी ने निवेशकों के पैसे का कितना अच्छा उपयोग किया है. इसका भी फार्मूला है.

Net Profit हमेशा ‘Income statement’ से पता चलता है और Shareholder’s equity कंपनी के ‘Balance sheet’ से. यहाँ पर Net Income का अर्थ है Tax भरने के बाद जो profit हुआ है वो. Shareholder’s equity को यहाँ Average Shareholder’s Equity भी कहते है. अब इक्विटी buybacks और dividends की वजह से बदलती रह सकती है इसलिए इसका average निकालने के लिए एक छोटा सा फार्मूला है.

(FY Beginning Equity + FY Ending Equity) ÷ 2 = 𝒙

उदाहरण:

मान लीजिए कि एक कंपनी का शुद्ध लाभ (Net Income) ₹5 लाख है और उसके शेयरधारकों की कुल इक्विटी (Shareholders’ Equity) ₹25 लाख है. तो, ROE इस प्रकार होगा –

अब सवाल यह उठता है की एक अच्छी कंपनी का ROE कितना होना चाहिए? जानकारों और विशेषज्ञों का मानना है कम से कम 15%. और यह साल दर साल होना चाहिए.

Note: केवल ROE का अच्छा होना इस बात की गारंटी नहीं है की कंपनी बोहोत अच्छी है. इसमें Debt एक अहम् भूमिका निभाता है. बोहोत ज्यादा ROE (जैसे 50% या उससे धिक) यह संकेत दे सकता है कि कंपनी पर बोहोत ज्यादा क़र्ज़ है. ऐसे में निवेश करना जोखिम भरा हो सकता है.

5. Return on Capital Employed (ROCE)

Return on Capital Employed (ROCE) बोहोत ही महत्वपूर्ण ratio है. इससे कंपनी की efficiency और profit making ability का पता चलता है. ROCE से पता चलता है कि कंपनी ने जो पूंजी (capital) निवेश की है, उस पर कितना लाभ (profit) कमाया है. ROCE और ROE में हल्का सा अंतर है जिसे हम आगे देखेंगे.

मान लीजिये मनोज नाम के एक व्यक्ति को किसी business के लिए 5 लाख की ज़रूरत है. अगर वो यह पैसा अपने जेब से निवेश करता है तो ज़ाहिर सी बात है वो 100% का मालिक कहलायेगा. मान लीजिये उसके पास 1 लाख कम है और वो मदद के लिए अपने दोस्त सुनील के पास जाता है.

अब सुनील उसे 1 लाख देगा और कहेगा मुझे इसके बदले कुछ नहीं चाहिए, तू मुझे बाद में पैसे लौटा देना. या फिर कहेगा, मै 1 लाख देता हु लेकिन इसके बदले मुझे कुछ हिस्सेदारी चाहिए. मनोज हिस्सेदारी के लिए मान जाता है और सुनील से पैसे ले लेता है. तो अब सुनील, मनोज की कंपनी का shareholder कहलायेगा. Shares को ही Equity कहते है.

दूसरा तरीका यह है की मनोज अपने कम्पनी में किसी को हिस्सेदारी नहीं देना चाहता भले ही उसे 1 lakh ब्याज पर मिल जाये. ऐसे में वो किसी बैंक के पास जायेगा और loan लेगा. Loan लिया मतलब अब उस पर कर्ज़ा हो गया. अर्थात Debt.

अब मान लीजिये मनोज को एक साल बाद अपने पूंजी पर 2.5 lakh का फायदा हुआ. तो उसका profit हुआ 50%. यही 50% आपका return on capital employed कहलायेगा. और capital कितना था – 5 लाख. (4 लाख मनोज + 1 लाख बैंक)

अब सवाल उठता है की ROCE और ROE में क्या अंतर है?

ROCE में सम्पूर्ण पूंजी (total capital) जैसे की equity+debt को count (गणना) किया जाता है. जबकि ROE में केवल shareholders के निवेश को count किया जाता है. अब यहाँ दो प्रकार के returns देखने मिलेंगे.

(1) पहला return – जिसमे केवल shareholders का पैसा शामिल है. (इसलिए कहा जाता है return on Equity)

(2) दूसरा return – जिसमे बैंक द्वारा दिया गया पैसा, मनोज का अपना पैसा, किसी दोस्त से उधार लिया वो पैसा, सबकुछ. Total capital. (इसलिए कहा जाता है return on Capital Employed)

ROCE का भी फार्मूला है.

जहाँ:
EBIT = Earnings Before Interest and Tax (ब्याज और कर से पहले की कमाई)
Capital Employed = Total Assets – Current Liabilities (कुल संपत्ति – चालू देनदारियाँ)

Debt. यह अपने आप में बहुत बड़ा किरदार निभाता है इसलिए किसी भी कंपनी में निवेश करते वक़्त उसका debt देखना चाहिए.

अगर किसी कंपनी पर debt नहीं है या शून्य के बराबर का debt है तो उसका ROE देखना चाहिए.

अगर किसी कंपनी पर debt है तो उसका ROCE देखना चाहिए.

Note: ROE और ROCE complex terms होते है क्यूंकि इनके पीछे Income statement और balance sheet के calculations होते है.

Conclusion (सारांश)

उपरोक्त समझाए गए सभी Ratios आसानी से गूगल पर मिल जाते है. यह एक कोशिश थी की पाठकों को इन ratios का महत्व समझ सके. निवेश करने से पहले अपने वित्तीय सलाहकार (financial advisor) से ज़रूर विचार विमर्श करे.

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